बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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हिन्दी काव्य का इतिहास
प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
एक क्रान्तिकारी समाज सुधारक के रूप में कबीर के अवदान का मूल्यांकन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. कबीर एक समाज सुधारक एवं क्रान्तिकारी कवि हैं। संक्षेप में प्रमाणित कीजिए।
2. कबीर समाज सुधारक पहले हैं, कवि बाद में। इस कथन पर अपने तर्क संगत विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर -
कबीर सच्चे सन्त थे। अपने समय में वे सभी प्रकार के आडम्बरों का खण्डन करते रहे। उन्हें मानवता प्रिय थी। मानवता के नाम पर जो पाखण्ड चलता है, उससे उन्हें घृणा थी। उच्च कुल में पैदा होने पर भी मानव स्वभाव में गुण और कर्म में यदि उच्चता नहीं है तो कुल की उच्चता उसे उच्च नहीं बना सकती। कबीर कुल को नहीं, शरीर को भी नहीं, सद्गुणों को और सदाचार को महत्व देते हैं। जाति-पाँति, छुआ-छूत आदि की जो मान्यतायें लोक में प्रचलित हैं, वे यथार्थ होने पर ही मान्यता प्राप्त कर सकती हैं अन्यथा कबीर कहते हैं -
"बड़ा भया तो का भया, जैसे पेड़ खजूर।
पंक्षी को छाया नहीं, फल लागत अति दूर ॥
ऊँचे कुल का जनिमिया, करनी ऊँच न होय।
सुबरन कलस सुराभरा, साधू निन्दै सोय ॥'
इसी आधार पर वे वैष्णवों की प्रशंसा तथा शाक्तों की निन्दा करते हैं
(1) "मेरे संगी द्वै जना एक वैष्णव एक राम "
(2) "साकत बाभन न मिले, वैष्णव मिले चंडाल।'
कबीर मन की शुद्धि तथा साधु-सत्संग पर अधिक बल देते हैं।
"मधुरा जावै, द्वारका जावै जावै जगन्नाथ।
साधु संगति हरि भगत बिनु कछु न आवै हाथ ॥'
डॉ. रामरतन भटनागर का कथन है।
"कबीर ने समाज सुधारक का ही नहीं, बल्कि जीवन गढ़ने को मनुष्य को गढ़ने का भी प्रयत्न किया है।'-
कबीर का लक्ष्य था समाज से बुराई को मिटाना तथा अच्छाई को स्थापित करना इसीलिए वे अत्याचारियों और घमंडियों को समझाते हुये कहते हैं
"दुर्बल को न सताइये, जाकि मोटी हाय।
मुई खाल की साँस सो, सार भसम है जाय।"
वे लोक कल्याण के लिये दृढ़संकल्प थे, फिर भी लोक-कल्याण के मध्य गृहस्थ और बैरागी में इनकी दृष्टि में कोई भेद न था -
"बैरागी बिरकत भला, गिरही चित उदार।
दुहुँ चूँका रीता पड़ै, ताकूँ बार न पार।
कबीर सज्जनता एवं शीलत्व को सर्वोपरि मानते थे -
"सीलवन्त सबसे बड़ा, सर्व रतन की खानि।
तीन लोक की सम्पदा, रही सील की आनि।'
कबीर की साधना का पूर्ण आधार प्रेम है। पाखण्ड एवं बाह्याचार प्रेम के मार्ग बाधक प्रतीत होते हैं। इसी कारण उन्होंने सम्प्रदायवाद, जातिवाद, छुआछूत आदि का खुलकर विरोध किया है, जैसे-
"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।"
इसी को दृष्टि में रखकर डॉ. रामकुमार वर्मा ने लिखा है -
"कबीर जिस सन्त मत के प्रवर्तक थे, उसमें बाह्याडम्बर के जितने रूप हो सकते थे, उनका बहिष्कार सम्पूर्ण रूप से किया है।'
वैष्णव के छापा - तिलक आदि बाह्य चिन्हों और आडम्बरों का वे विरोध करते हैं।
(1) "वैष्णव भइया तो का भया, उपजा नहीं विवेक।"
(2) "पंडित हु कै आसन मारै, लम्बी माला जपता है।
अन्तर तेरे कपट कतरनी, सो भी साहब लिखता है।'
इसी प्रकार पूजा पाठ, व्रत रखना, आरती करना आदि को वे गुड़ियों का खेल समझते
(1) "पूजा सा वह नेम व्रत, गुड़ियों का सा खेल "
(2) "कर में तो माला फिरै, जीभ फिरै मुख माँहि।'
कबीर के युग में सहजपंथी का प्रचार किया करते थे। कबीर ने उसकी वाचालता देखी, सहज-सहज कहने के स्थान पर उन्हें सहज पंथ से बहुत दूर पाया, तो उन्हें सहन न हो सका और वे कहने लगे -
"साहिब- साहिब सबही कहै साहिब न चीन्हें कोय।
जो कबीर छिल्या तजै, साहिब कही जे सोय।"
कबीर ने जहाँ-जहाँ पाखण्ड देखा, वहीं उसकी निन्दा की। चाहे जैन हो, चाहे बौद्ध, चाहे शाक्य हो, चाहे चारवाक्, चाहे हिन्दू हो, चाहे मुसलमान सबमें वे सदाचार के महत्व को प्रतिष्ठित हुआ देखना चाहते थे। यदि भगवान सर्वव्यापक हैं, तो वह क्या सभी स्थान पर मिलेगा?
(1) "जोरे खुदाय मसीत बसत है और मुलुक किहि केरा।'
(2) "काँकर पाथर जोरिके मस्जिद लयी बनाय।'
जन्म से तो सभी शूद्र हैं, संस्कार ही उन्हें द्विज बनाते हैं। संस्कार शून्य व्यक्ति द्विज नहीं बन सकता। इसीलिये कबीर ने लिखा है -
"जो तू बावन बावनी जाया, आनि बाटि है काहे न आया।'
इसी प्रकार छूत-अछूत की समस्या पर कबीर लिखते हैं -
"काहे को कीजै पाण्डे छोट विचारा।
छोटई से ऊपजै संसारा।"
कबीर ने मूर्तिपूजा की भी निन्दा की है -
"पत्थर पूजै हरि मिलै तो मैं पूजौं पहार।"
कबीर ने हिन्दू और मुसलमान दोनों मतों के पाये जाने वाले आडम्बरों की निन्दा की है। भगवान के नाम पर जो दोनों में संघर्ष हुए हैं, उनकी कड़ी आलोचना की है।
(1) "अरे इन दोउन राह न पाई।
हिन्दुअन की हिन्दुआई देखी तुरकन की तुरकाई ॥"
(2) "एक निरन्जन अल्लाह मेरा
हिन्दू तुरक दुहुँ नहिं मेरा '
कबीर ने माँस, मदिरा आदि सेवन की भर्त्सना की है -
"बकरी पाती खात है, ताकी काढ़ी खाल।
जो नर बकरी खात हैं, जिनके कौन हवाल ॥"
कबीर की दृष्टि में मन्दिर में ही ईश्वर का दर्शन करना तथा मस्जिद में ही खुदा की दीदार करना उचित नहीं है -
"जो खोदाय मस्जिद में बसत है
और मुलुक केहि केरा।
तीरथ मूरति राम निवासी,
बाहर करै को हेरा'
कबीर ने धर्म की अव्यवस्था को देखकर धर्म के ठेकेदारों की खूब कटु आलोचना की है। मुसलमान कुरान की दुहाई देते थे और हिन्दू वेदवाणी को प्रमाण बताकर अन्धविश्वासों को फैलाने का प्रयास करते थे। इसीलिए कबीर ने जमकर उन्हें खरी-खोटी सुनाई थी।
(1) "घर-घर में सदा साई रमता,
कटुक वचन न बोल रे ॥"
(2) "सब घर मेरा साइयाएँ, सूनी सेज न कोई।
भाज तिन्हीं का हे सखी, जिन घट परघट होय।"
कबीर की दृष्टि में राम और रहीम, कृष्ण और करीम में कोई अन्तर न था। यदि हमें ब्रह्मा की सच्ची अनुभूति हो जाय, तो सारे धर्मों का संघर्ष समाप्त हो जायेगा।
"हमारे राम रहीम करीमा केसो, अलह रामसति सोई।"
उपर्युक्त उदाहरणों से यह स्वयं सिद्ध है कि कबीर धर्म के संकीर्ण बाह्याडम्बरों के विरुद्ध थे। इसीलिए उन्होंने उन सभी की आलोचना की है। परन्तु धर्म के उदार एवं उदात्त रूप को उन्होंने स्वीकार किया है। तभी तो वह शाक्तों की बुराई करते हैं और वैष्णवों की प्रशंसा करते हैं। यही नहीं, वैष्णव यदि चंडाल भी हैं, तो उसकी प्रशंसा कबीर ने मुक्त कंठ से की है।
"साकत बाभन ना मिले, वैष्णों मिले चंडाल।
अंकमाल भरि भेटिये, मानौ मिलै गोपाल।'
कबीर की भक्ति भावना समन्वयवादी थी, इसीलिए उन्हें कोई रूढ़िगत विचार ग्राह्य न था, समदृष्टि ही उनके जीवन का सिद्धान्त था वही उनकी भक्ति भावना का मूलाधार था।
"कहौ सो नाम सुनौ सो सुमिरन, खाउँ पियो सो पूजा।
गिरह उजाड़ एक सम लेखौं, भाव न राखौ दूजा "
कबीर ने एक ओर व्यक्ति एवं धर्म के सुधारों के लिए प्रयत्न किया है, जो दूसरी ओर समाज की विभीषिकाओं को भी निर्मूल करने का प्रयास किया है। इसीलिए उन्होंने वर्ण-व्यवस्था का खण्डन किया था-
"जो तेहि कर्त्ता वर्ण विचारा जनमत तीन दण्ड किन सारा।"
कबीर ने हिन्दू समाज की छुआछूत की परम्परा को समाज के लिए पूर्णरूपेण व्यर्थ समझा था
"कहुँ पाँडे, सुचि कवन ठाउँ जिहिं घर भोजन बैठि खाउँ।'
कबीर समभाव में विश्वास रखते थे -
" एक बूंद एक मल भूतर एक चाम एक दाम '
कबीर के जीवन का आदर्श था, उदार भक्ति-भाव -
'राम विना संसार धुँध कुहेरा, सिरि प्रगट्या जम का पेरा '
सारांश यह है कि कबीर सत्य के प्रेमी थे। जहाँ सत् है, वहीं धर्म है और वहीं कबीर का हृदय है। उनकी सुधार भावना में समन्वय की स्थिति प्रधान है। पर इतना स्पष्ट है कि वे सत् से असत् का समन्वय कभी न कर सके। साधना पद्धति में भी भारतीय वेदान्त, सूफी साधना-पद्धति, बौद्ध-साधना पद्धति, पदों आदि में किया है। उन्होंने निर्गुण निराकार प्रभु की सूक्ष्म लीलाओं पर प्रकाश तो डाला ही है, साथ ही अवतारी लीलाओं का भी उल्लेख किया है। कबीर संत के परमदर्शन को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्राप्त करना चाहते थे। वे सच्चे समाज सुधारक थे।
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- प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
- प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
- प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
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- प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
- प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
- प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
- प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
- प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।